कनाना मेला जिसे शीतला माता मेला कोयणा के रूप में भी जाना जाता है, इस मेले का आयोजन होली के बाद 7 वे 8 वे दिन शीतला सप्तमी को होता है। इसमें आसपास के गांवों के साथ पुरे पशिमी राजस्तान के लाखों लोग भाग लेते है। इस उत्सव के मुख्य आकर्षण गेर दलों के नृत्य की शानदार प्रस्तुतियां और , सांस्कृतिक प्रदर्शन, अन्य प्रदर्शनियां और बहुत कुछ हैं। यह मेला होली के ठीक बाद पशिमी राजस्तान के बालोतरा क्षेत्र में आयोजित होने वाला पहला मेला है।
कोयणा मेला - शीतला माता मन्दिर और जाळ
कोयणा मेला स्थान
कोयणा मेला राजस्थान के जोधपुर संभाग के बाड़मेर जिले में बालोतरा के पास कनाना (कोयणा ) गांव में आयोजित होता है।
शीतला माता मेला कोयणा के बारे में
कोयणा (कनाना ) मेला - यह मेला पश्चिमी राजस्थान के बालोतरा क्षेत्र में हर साल आयोजित होने वाला एक पारंपरिक और सांस्कृतिक वार्षिक उत्सव है। इस मेले का आयोजन लूनी नदी के तट पर कानाना (कोयना) गाँव में होता है, जिसमे में आसपास के गाँवों के सभी समाज के लोग भाग लेते है और गैर-नृत्य किया जाता है। इसके साथ ही राजनीतिक और सामाजिक जागरूकता के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इस मेले में आप पश्चिमी राजस्थान की संस्कृति, वेशभूषा और सामाजिक मेलजोल का एक साथ अनुभव कर सकते हैं।
कोयणा मेला कब मनाया जाता है?
कोयना मेला हर साल होली के बाद सातवे दिन चैत्र कृष्णा सप्तमी को (बास्योड़ा या शील सातम) पर मनाया जाता है। इस मेले में शीतला माता से सुखी और समृद जीवन की प्रार्थना करते हैं।
कोयना मेला तिथि - चैत्र कृष्णा सप्तमी - अष्ट्मीकोयणा मेले का धार्मिक महत्व
इस दिन मेले के आयोजन का भी धार्मिक महत्व है। क्योंकि इस दिन होली से शुरू होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समापन होता है। होली खेलने से बिगड़े हुए वेष और निवास स्थान की सफाई की जाती है और नई विभूसा धारण कर नववर्ष की शुरुआत की जाती है। इस दिन, एक दिन पहले तैयार किए गए ठंडे भोजन (ठाडो ठरियो) को ग्रहण करके (बस्योदा या शील सातम) त्योहार मनाया जाता है, जो सभी सामाजिक वर्गों (अमीर और गरीब) को समान महत्व देने का प्रतीक है।
कोयना मेला कैसे मनाया जाता है?
शीतला माता मेला (बास्योड़ा या शील सातम) पर आयोजित होने वाला मेला है। कोयना मेला में भी कनाना ग्राम में स्थित शीतला माता जाल के निसे स्थित शीतला माता मंदिर में ठन्डे भोजन का भोग लगाया जाता है। और इस शीतला माता जाल (जाल या जाळ - एक पेड़ का नाम है ) के आसपास विभिन समूहों के द्वारा गैर नर्त्य खेला जाता है। इसके अलावा आप कुछ दिनों के लिए स्थापित स्थानीय हाटों और बाज़ारों से उपहार खरीद सकते हैं। स्मृति चिन्ह के रूप में इन बाजारों से पीतल के बर्तन, राजस्थानी वस्त्र, कपड़े के टुकड़े और खिलोने की खरीदी जा सकती है।